Followers

"Google-transliterate"

Type in Hindi (Press Ctrl+g to toggle between English and Hindi)

Saturday, December 4, 2010

दिन तो बदलते है

दिन तो बदलते है
जीते है मरते है
अपनी इस दुनिया में
पल पल फिसलते है

क्षण-भंगुर ये काया
भटकाती है माया
मन के इस भटकन से
बारम्बार छलते है


चलायमान सांसो का
गतिमान इस धड़कन का
नश्वर इस काया से
मोहभंग होना है

सावन फिर आयेगा
बदरा फिर छाएगा
ऋतुओं को आना है
आकर छा जायेगा

मन के इस पंछी को
तन के इस पिंजरे में
सहलाकर रखना है
वर्ना उड़ जायेगा

रे बंधु सुन रे सुन
नश्वर इस काया की
माया में न पड़ तू
वर्ना पछतायेगा

11 comments:

  1. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.

    ReplyDelete
  2. bilkul sahi kaha hai ...badlav hamesha chalta rehta hai.

    ReplyDelete
  3. सब जानते हुए भी लोंग इसी माया में पड़े रहते हैं ..प्रेरणादायक रचना

    ReplyDelete
  4. रबिन्द्र गान ;)
    लिखते रहिये ...

    ReplyDelete
  5. यथार्थ का चित्रण करती रचना।

    ReplyDelete
  6. मन के इस पंछी को
    तन के इस पिंजरे में
    सहलाकर रखना है
    वर्ना उड़ जायेगा

    vah ji vah kya baat hai

    ReplyDelete
  7. कविता के स्वर बहुत कुछ कह रहे हैं, सब जानते हुए भी हम इस भ्रम जाल से मुक्त कब हो पाते हैं.

    ReplyDelete

among us